आखिर क्यों टूटते हैं प्यार के रिश्ते

Safalata ki Kahaniya - Success Stories

संवेदना बनाती है हमें बेहतर

एक लड़का और लड़की अक्सर यही सोचकर विवाह के बंधन में बंधते हैं कि एकदूसरे के प्रति उनकी भावनाएं कभी नहीं बदलेंगी। लेकिन समय के साथ हम बदलते हैं और हमारे संबंध भी। संबंध स्थिर हो ही नहीं सकते। बदलाव को समझने पर ही हम रिश्तों को बनाए रख पाते हैं। अगर यह समझ नहीं आती है तो रिश्ते बिखर जाते हैं।

विवाह केवल दो लोगों के साथ जीवन गुजारने की सार्वजनिक सूचना भर नहीं होती। वह तो दो लोगों के एक मधुर बंधन में बंधने का मौका होता है। ऐसे बंधन में जो समय के साथ परिपक्व होता है और पति और पत्नी दोनों से ही परिपक्व होने की मांग भी करता है। आज वैवाहिक बंधन की उम्र कम हो रही है और तलाक के बहुत मामले सामने आ रहे हैं, तो इसके पीछे कुछ बहुत ठोस कारण हैं।

अक्सर युवा इस सोच के साथ विवाह करते हैं कि उनके साथी के प्रति उनकी भावनाएं कभी भी नहीं बदलेंगी, लेकिन संबंधों में समय के साथ बदलाव आता ही है और प्रेम की भावनाएं भी समय के साथ एक जैसी नहीं रह जातीं।

जिस तरह समय के साथ व्यक्तित्व में बदलाव आता है, हमारी इच्छाएं बदलती हैं तो हम एकदूसरे के प्रति प्रेम की अभिव्यक्ति में भी बदलाव पाते ही हैं।

हर वैवाहिक जीवन में आपसी झगड़े होते हैं महत्वपूर्ण यह नहीं है कि इस झगड़े का उन पर क्या असर होता है बल्कि महत्व इसका है कि आपसी झगड़े से वे क्या सीखते हैं। एकदूसरे से अलगाव उन्हें किस तरह परिपक्व बनाता है।

विवाह तरक्की या आगे बढ़ने की संभावना मात्र नहीं है बल्कि वह आगे बढ़ने की जरूरत भी आपके सामने रखता है।

संवेदना बनाती है हमें बेहतर

जब हम पहली बार किसी पर मुग्ध होते हैं तो हम उसकी सुंदरता पर ही मुग्ध होते हैं और हमारा आकर्षण तो बस सुंदरता ही होती है। इसमें हम इतना खोए रहते हैं कि हम उस व्यक्ति में उन्हीं चीजों को देखते हैं जो सकारात्मक हैं।

हमारा ध्यान उन बातों पर नहीं जाता जिन्हें हम पसंद नहीं करते हैं। प्रेम इसी तरह एक अच्छा और बेहतर इंसान बनने में हमारी मदद करता है क्योंकि तब हम दूसरे के सकारात्मक पक्ष पर ही नजर रखते हैं।

यह सकारात्मकता ही हमें अधिक करुण, दयालु, प्रशंसक और दूसरों के प्रति संवेदनशील बनाती है।

किसी भी संबध या विवाह की शुरुआत में हम सोचते हैं कि हमारा साथी अच्छा है और इसलिए हम अच्छा महसूस कर रहे हैं। यह सच नहीं होता। हम अच्छा इसलिए महसूस करते हैं क्योंकि हम अपने साथी की अच्छाइयों पर ही ध्यान देते हैं, उन बातों पर ध्यान देते हैं जो हमें अच्छा महसूस करने में मदद करती हैं।

तब हम सकारात्मक तरीके से चीजों को देखते हैं और अभिभूत रहते हैं।

नकारात्मकता से कम होता प्रेम

यह मानवीय स्वभाव है कि जैसे-जैसे समय बीतता है जिस साथी पर हम बहुत ज्यादा ध्यान दे रहे थे उससे हमारा ध्यान हटने लगता है और अपने जीवन की छोटी-छोटी चीजों की तरफ जाने लगता है। यह भी मानव स्वभाव ही कहा जाएगा कि नकारात्मक चीजें हमारा ध्यान ज्यादा खींचती हैं।

यही कारण है कि हमारा ध्यान अपने साथी की सकारात्मक बातों से हटकर उन चीजों की ओर जाता है जिन्हें हम पसंद नहीं करते हैं।

प्रेम की पवित्र और सकारात्मक उर्जा पर नकारात्मकता हावी होने लगती है। यही नकारात्मकता कारण बनती है कि प्रेम का असर कम होने लगता है। इसका हमारे साथी से सीधा संबंध नहीं है। प्रेम में कमी आना यह बताता है कि हमारा ध्यान नकारात्मक दिशा में जा रहा है। जब हम सकारात्मकता से नकारात्मकता की ओर एकाग्र होने लगते हैं तो प्रेम की भावुक तीव्रता कम होने लगती है।

जैसे ही प्रेम की तीव्रता कम होने लगती है एकदूसरे का खयाल, करुणा, संवेदना भी कमतर लगने लगती है। इसी का परिणाम है कि हम खुद को एक अच्छे इंसान की तरह नहीं पाते। हम अंतरंग क्षणों में प्रेम को नहीं जी पाते। कुछ खालीपन अपने भीतर महसूस होने लगता है।

किसी संबंध में जब दोनों ही साथी इस तरह से महसूस करते हैं तो संबंध टूटने की कगार पर पहुंच जाता है।

समय के साथ बदलता है प्रेम

दरअसल जब हम प्रेम में होते हैं तो उसे जीवनभर की सुनिश्चितता मानने लगते हैं। हम यह मानते हैं कि चीजें वैसी ही रहेंगी जैसी हम चाहते हैं। इसलिए हम यह विचारने लगते हैं कि यह हमारी जीवनभर की प्रसन्नाता की गारंटी है।

इस तरह के भ्रम के कारण ही हम अपनी अप्रसन्नाता के लिए दूसरे को दोष देने लगते हैं और संबंध बिखरता है। जीवन भर का साथ निभाने वाले दोनों व्यक्तियों को लगता है कि वे पैसे, रिश्ते, अन्य लोगों या किसी भी और कारण की वजह से एकदूसरे से लड़ रहे हैं लेकिन असल में लड़ाई की वजह है हमारे भीतर की अच्छाई न्यूनतम हो जाती है।

हम यह चाहते हैं कि हमारा साथी हमेशा वैसा ही रहे जैसा हम चाहते हैं। लेकिन हमारा साथी कभी हमें बेहतर व्यक्ति नहीं बनाता है।

वह तो हमारे अपने ही भीतर की करुणा और संवेदनशीलता बेहतर बनने में हमारी मदद करती है।हम अपने प्रति अच्छा महसूस करना चाहते हैं तो हमें अपनी संवेदनशीलता को बढ़ाने की जरूरत है। जब हम पहले की तरह दूसरे के प्रति पेश आते हैं तो हम उसमें अच्छाइयां तलाश ही लेते हैं।

जब भी आप अपने संबंध में पहले की तरह पेश आने लगेंगे या अपनी उसी संवेदनशीलता को जीने लगेंगे आपको संबंध में प्रेम नजर आने लगेगा और अचानक सबकुछ बदला हुआ नजर आएगा। जब अपने आनंद में रहेंगे तो नजदीकी लोगों को भी उसका लाभ देंगे और सबसे पहला लाभ तो आपके जीवनसाथी को ही मिलेगा।

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