अग्नि पुराण

अग्नि पुराण की कथा

अग्नि पुराण अति प्राचीन पुराण है। शास्त्रीय व विषयगत दृष्टि से यह पुराण बहुत ही महत्वपूर्ण पुराण है। अग्नि पुराण में 12 हजार श्लोक, 383 अध्याय उपलब्ध हैं।

स्वयं भगवान अग्नि ने महर्षि वशिष्ठ जी को यह पुराण सुनाया था। इसलिये इस पुराण का नाम अग्नि पुराण प्रसिद्ध है। विषयगत एवं लोकोपयोगी अनेकों विद्याओं का समावेश अग्नि पुराण में है।

आग्नेये हि पुराणेस्मिन् सर्वा विद्याः प्रदर्शिताः (अग्नि पुराण)

पद्म पुराण में पुराणों को भगवान बिष्णु का मूर्त रूप बताया गया है। उनके विभिन्न अंग ही पुराण कहे गये हैं। इस दष्ष्टि से अग्नि पुराण को श्री हरि का बाँया चरण कहा गया है।

अग्नि पुराण में अनेकों विद्याओं का समन्वय है जिसके अन्तर्गत दीक्षा विधि, सन्ध्या पूजन विधि, भगवान कष्ष्ण के वंश का वर्णन, प्राण-प्रतिष्ठा विधि, वास्तु पूजा विधि, सम्वत् सरों के नाम, सष्ष्टि वर्णन, अभिषेक विधि, देवालय निर्माण फल, दीपदान व्रत, तिथि व्रत, वार व्रत, दिवस व्रत, मास व्रत, दान महात्म्य, राजधर्म, विविध स्वप्न, शकुन-अपशकुन, स्त्री-पुरूष के शुभाशुभ लक्षण, उत्पात शान्त विधि, रत्न परीक्षा, लिंग का लक्षण, नागों का लक्षण, सर्पदंश की चिकित्सा, गया यात्रा विधि, श्राद्ध कल्प, तत्व दीक्षा, देवता स्थापन विधि, मन्वन्तरों का परिगणन, बलि वैश्वदेव, ग्रह यंत्र, त्र्लोक्य मोहनमंत्र, स्वर्ग-नरक वर्णन, सिद्धि मंत्र, व्याकरण, छन्द शास्त्र, काव्य लक्षण, नाट्यशास्त्र, अलंकार, शब्दकोष, योगांग, भगवद्गीता, रामायण, रूद्र शान्ति, रस, मत्स्य, कूर्म अवतारों की बहुत सी कथायें और विद्याओं से परिपूर्ण इस पुराण का भारतीय संस्कष्त साहित्य में बहुत बड़ा महत्व है।

अग्नि पुराण का फल:

अग्नि पुराण को साक्षात् अग्नि देवता ने अपने मुख से कहा हे। इस पुराण के श्रवण करने से मनुष्य अनेकों विद्याओं का स्वामी बन जाता है। जो ब्रह्मस्वरूप अग्नि पुराण का श्रवण करते हैं, उन्हें भूत-प्रेत, पिशाच आदि का भय नहीं सताता।

इस पुराण के श्रवण करने से ब्राह्मण ब्रह्मवेत्ता, क्षत्रिय राजसत्ता का स्वामी, वैश्य धन का स्वामी, शूद्र निरोगी हो जाता है तथा उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इतना ही नहीं जिस घर में अग्नि पुराण की पुस्तक भी हो, वहाँ विघ्न बाधा, अनर्थ, अपशकुन, चोरी आदि का बिल्कुल भी भय नहीं रहता। इसलिये अग्नि पुराण की कथा का श्रवण अवश्य करना चाहिये।

अग्नि पुराण करवाने का मुहुर्त:

अग्नि पुराण कथा करवाने के लिये सर्वप्रथम विद्वान ब्राह्मणों से उत्तम मुहुर्त निकलवाना चाहिये। अग्नि पुराण के लिये श्रावण-भाद्रपद, आश्विन, अगहन, माघ, फाल्गुन, बैशाख और ज्येष्ठ मास विशेष शुभ हैं। लेकिन विद्वानों के अनुसार जिस दिन अग्नि पुराण कथा प्रारम्भ कर दें, वही शुभ मुहुर्त है।

अग्नि पुराण का आयोजन कहाँ करें?:

अग्नि पुराण करवाने के लिये स्थान अत्यधिक पवित्र होना चाहिये। जन्म भूमि में अग्नि पुराण करवाने का विशेष महत्व बताया गया है – जननी जन्मभूमिश्चः स्वर्गादपि गरियशी – इसके अतिरिक्त हम तीर्थों में भी अग्नि पुराण का आयोजन कर विशेष फल प्राप्त कर सकते हैं। फिर भी जहाँ मन को सन्तोष पहुँचे, उसी स्थान पर कथा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।

अग्नि पुराण करने के नियम:

अग्नि पुराण का वक्ता विद्वान ब्राह्मण होना चाहिये। उसे शास्त्रों एवं वेदों का सम्यक् ज्ञान होना चाहिये। अग्नि पुराण में सभी ब्राह्मण सदाचारी हों और सुन्दर आचरण वाले हों। वो सन्ध्या बन्धन एवं प्रतिदिन गायत्री जाप करते हों। ब्राह्मण एवं यजमान दोनों ही सात दिनों तक उपवास रखें। केवल एक समय ही भोजन करें। भोजन शुद्ध शाकाहारी होना चाहिये। स्वास्थ्य ठीक न हो तो भोजन कर सकते हैं।


The Agni Purana is a very ancient Purana. This Purana is very important from the classical and thematic point of view. The Agni Purana has 12,000 verses and 383 chapters. Lord Agni himself had told this Purana to Maharishi Vashishtha. That is why this Purana is famous as Agni Purana. The Agni Purana contains many thematic and popular sciences.

For in the Agneya Purana all the knowledge is displayed (Agni Purana)

In the Padma Purana, the Puranas are described as the embodiment of Lord Vishnu. Their various parts are called Puranas. From this point of view, the Agni Purana is called the left leg of Sri Hari.

Agni Purana coordinates many sciences including initiation method, evening worship method, description of the lineage of Lord Krishna, prana-pratishtha method, Vastu worship method, names of the years, sashshti description, consecration method, temple construction fruits, lamp giving vow , Tithi Vrat, War Vrat, Divas Vrat, Maas Vrat, Dan Mahatmya, Rajadharma, Various Dreams, Omen-Omen, Good and Evil Symptoms of Men and Women, Disaster Calm Method, Gemstone Examination, Symptoms of Linga, Symptoms of Snakes, Treatment of Snake Bites , Gaya Yatra Vidhi, Shraddha Kalpa, Tattva Diksha, Devata Sthapana Vidhi, Manvantaras Ka Parigana, Bali Vaishvadeva, Graha Yantra, Trlokya Mohan Mantra, Swarg-Narak Varnan, Siddhi Mantra, Grammar, Chhanda Shastra, Kavya Lakshan, Natyashastra, Alankar, Shabdkosh, This Purana, which is full of many stories and lessons of Yoga, Bhagavad Gita, Ramayana, Rudra Shanti, Rasa, Matsya, Kurma incarnations, is of great importance in Indian Sanskrit literature.

Fruit of Agni Purana:

The Agni Purana is told by the god of fire himself. By listening to this Purana, man becomes the master of many sciences. Those who hear the Brahma-swaroop Agni Purana are not afraid of ghosts, ghouls, devils, etc. By hearing this Purana, the Brahmin becomes the Brahmavetta, the Kshatriya the lord of royal power, the Vaishya the lord of wealth, the Shudra becomes healthy and all their sins are destroyed. Moreover, in a house where there is a book of Agni Purana, there is no fear of obstacles, misfortune, bad luck, theft, etc. at all. Therefore, one must listen to the story of the Agni Purana.

Muhurt to perform Agni Purana:

To conduct Agni Purana Katha, first of all, one should get the best time from learned Brahmins. The months of Shravan-Bhadrapad, Ashwin, Agahan, Magh, Falgun, Baisakh and Jyeshta are especially auspicious for Agni Purana. But according to scholars, the day on which the Agni Purana Katha is started is the auspicious time.

Where to organize Agni Purana?:

The place should be very holy for performing Agni Purana. The special importance of performing Agni Purana in the birthplace is mentioned – Janani Janmabhoomi Chah Swargadpi Gariyashi – In addition, we can also organize Agni Purana in the holy places and get special fruits. Yet where the mind reaches satisfaction, the same place where the story is obtained auspicious fruits.

Rules for performing Agni Purana:

The speaker of the Agni Purana should be a learned Brahmin. He should have a thorough knowledge of the scriptures and the Vedas. In the Agni Purana, all Brahmins should be virtuous and have beautiful conduct. He should perform Sandhya Bandhan and chant Gayatri every day. Both the Brahmin and the priest should fast for seven days. Eat only at one time. The food should be purely vegetarian. If you are not in good health, you can eat.

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

÷ 2 = 1