श्रीमद्भागवत पुराण में काल गणना

श्रीमद्भागवत पुराण’ में काल गणना भी अत्यधिक सूक्ष्म रूप से की गई है। वस्तु के सूक्ष्मतम स्वरूप को ‘परमाणु’ कहते हैं। दो परमाणुओं से एक ‘अणु’ और तीन अणुओं से मिलकर एक ‘त्रसरेणु’ बनता है। तीन त्रसरेणुओं को पार करने में सूर्य किरणों को जितना समय लगता है, उसे ‘त्रुटि’ कहते हैं।

त्रुटि का सौ गुना ‘कालवेध’ होता है और तीन कालवेध का एक ‘लव’ होता है। तीन लव का एक ‘निमेष’, तीन निमेष का एक ‘क्षण’ तथा पाँच क्षणों का एक ‘काष्टा’ होता है।

पन्द्रह काष्टा का एक ‘लघु’, पन्द्रह लघुओं की एक ‘नाड़िका’ अथवा ‘दण्ड’ तथा दो नाड़िका या दण्डों का एक ‘मुहूर्त’ होता है। छह मुहूर्त का एक ‘प्रहर’ अथवा ‘याम’ होता है।

चतुर्युग (सत युग, त्रेता युग, द्वापर युग, कलि युग) में बारह हज़ार दिव्य वर्ष होते हैं। एक दिव्य वर्ष मनुष्यों के तीन सौ साठ वर्ष के बराबर होता है।

युग – वर्ष

सत युग -चार हज़ार आठ सौ
त्रेता युग-तीन हज़ार छह सौ
द्वापर युग-दो हज़ार चार सौ
कलि युग-एक हज़ार दो सौ

प्रत्येक मनु 7,16,114 चतुर्युगों तक अधिकारी रहता है। ब्रह्मा के एक ‘कल्प’ में चौदह मनु होते हैं। यह ब्रह्मा की प्रतिदिन की सृष्टि है। सोलह विकारों (प्रकृति, महत्तत्व, अहंकार, पाँच तन्मात्रांए, दो प्रकार की इन्द्रियाँ, मन और पंचभूत) से बना यह ब्रह्माण्डकोश भीतर से पचास करोड़ योजन विस्तार वाला है।

उसके ऊपर दस-दस आवरण हैं। ऐसी करोड़ों ब्रह्माण्ड राशियाँ, जिस ब्रह्माण्ड में परमाणु रूप में दिखाई देती हैं, वही परमात्मा का परमधाम है। इस प्रकार पुराणकार ने ईश्वर की महत्ता, काल की महानता और उसकी तुलना में चराचर पदार्थ अथवा जीव की अत्यल्पता का विशद् विवेचन प्रस्तुत किया है।


In ‘Shrimad Bhagwat Purana’, the time calculation has also been done very minutely. The subtlest form of matter is called ‘atom’. Two atoms make up an ‘anu’ and three atoms make up a ‘trasrenu’. The time taken by the sun rays to cross the three trasarenu is called ‘truti’.

Hundred times of error is ‘Kaalvedha’ and three Kaalvedhas are one ‘Love’. There is a ‘Nimesh’ of three Loves, a ‘Kshan’ of three Nimesh and a ‘Kashta’ of five moments.

There is a ‘Laghu’ of fifteen Kashta, a ‘Nadika’ or ‘Danda’ of fifteen Laghu and a ‘Muhurta’ of two Nadikas or Dandas. There is a ‘Prahar’ or ‘Yam’ of six moments.

There are twelve thousand divine years in Chaturyug (Sat Yug, Treta Yug, Dwapar Yug, Kali Yug). One celestial year is equal to three hundred and sixty human years.

Era – Year

Sat Yuga – four thousand eight hundred
Treta Yuga – three thousand six hundred
Dwapar Yuga – 2400
Kali Yuga – One thousand two hundred

Each Manu holds authority for 7,16,114 chaturyugas. There are fourteen Manus in one ‘Kalpa’ of Brahma. This is the daily creation of Brahma. This universe made up of sixteen vices (nature, importance, ego, five tanmatras, two types of senses, mind and five elements) is fifty crore yojanas expansion from inside.

There are ten covers on it. Crores of such cosmic signs, in which the universe is visible in atomic form, that is the supreme abode of the Supreme Soul. In this way, the Puranakar has presented a detailed description of the importance of God, the greatness of Time and in comparison to that, the inferiority of the grazing matter or the creature.

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