सुभाषित

Subhashitani Sanskrutam

संस्कृत के सुभाषित

सुभाषित शब्द “सु” और “भाषित” के मेल से बना है जिसका अर्थ है “सुन्दर भाषा में कहा गया”। संस्कृत के सुभाषित जीवन के दीर्घकालिक अनुभवों के भण्डार हैं।

विरला जानन्ति गुणान् विरला: कुर्वान्ति निर्धने स्नेहम् ।
विरला: परकार्यरता: परदु:खेनापि दु:खिता विरला: ।।

सुभाषित का अर्थ

दूसरों के गुण पहचाननेवाले थोडे ही है । निर्धन से नाता रखनेवाले भी थोडे है ।
दूसरों के काम में मग्न होनेवाले थोडे हैं तथा दूसरों का दु:ख देखकर दु:खी होनेवाले भी थोडे है ।

Sanskrutam Subhashitani

पदाहतं सदुत्थाय मूर्धानमधिरोहति ।
स्वस्थादेवाबमानेपि देहिनस्वद्वरं रज: ।।

सुभाषित का अर्थ

जो पैरों से कुचलने पर भी उपर उठता है ऐसा मिट्टी का कण अपमान किए जाने पर भी चुप बैठनेवाले व्यक्ति से श्रेष्ठ है ।

Sanskrutam Subhashitani

यादृशै: सन्निविशते यादृशांश्चोपसेवते ।
यादृगिच्छेच्च भवितुं तादृग्भवति पूरूष: ।।

सुभाषित का अर्थ

मनुष्य जिस प्रकार के लोगों के साथ रहता है , जिस प्रकार के लोगों की सेवा करता है , जिनके जैसा बनने की इच्छा करता है , वैसा वह होता है ।

Sanskrutam Subhashitani

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

1 + 5 =

%d bloggers like this: