राधे राधे आजका भगवत चिन्तन

संसार तुम्हारा ऋणी रहे

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आज संसार में वुद्धि की कहीं कमीं नहीं है पर शुद्धि की बहुत कमीं है। बुद्ध बनने के लिए बुद्धि नहीं शुद्धि की आवश्यकता है। बुद्धि सृजन में कम विध्वंश में ज्यादा लगी हुई है। बुद्धि जोड़ने में कम तोड़ने में ज्यादा लग रही है। जीवन किसी को नहीं थकाता, बुद्धि थका देती है।

संसार में कुछ बुद्धिमान तो केवल मीमांसा करने में ही लगे रहते हैं। अँधेरे को कोसने में ही जीवन लगा देते हैं। काश ! एक पल दीपक जलाने का भी बिचार उन्हें आ जाता। कुछ बुद्धिमान गतिशील नहीं है , कुछ की गतिशीलता गलत दिशा में चली गई है।

इस बुद्धि का शोधन कैसे किया जाये ? सत्संग के आश्रय से ही बुद्धि का शोधन सम्भव है। आपके पास ऊर्जा की कोई कमीं नहीं है पर चेतना की कमी है। कर्मशील तो हो पर चिन्तनशील भी बनो। जिससे संसार का उपकार हो और संसार तुम्हारा ऋणी रहे।

जय श्री कृष्णा

जय जय श्री राम

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