कामदेव का आश्रम – बालकाण्ड

दूसरे दिन ब्राह्म-मुहूर्त्त में निद्रा त्याग कर मुनि विश्वामित्र तृण शैयाओं पर विश्राम करते हुये राम और लक्ष्मण के पास जा कर बोले, हे राम और लक्ष्मण!, जागो। रात्रि समाप्त हो गई है।

कुछ ही काल में प्राची में भगवान भुवन-भास्कर उदित होने वाले हैं। जिस प्रकार वे अन्धकार का नाश कर समस्त दिशाओं में प्रकाश फैलाते हैं उसी प्रकार तुम्हें भी अपने पराक्रम से राक्षसों का विनाश करना है। नित्य कर्म से निवृत होओ, सन्ध्या-उपासना करो।

अग्निहोत्रादि से देवताओं को प्रसन्न करो। आलस्य को त्यागो और शीघ्र उठ जाओ क्योंकि अब सोने का समय नहीं है।

गुरु की आज्ञा प्राप्त होते ही दोनों भाइयों ने शैया त्याग दिया और नित्यकर्म एवं स्नान-ध्यान आदि से निवृत होकर मुनिवर के साथ गंगा तट की ओर चल दिये। वे गंगा और सरयू के संगम, जहाँ पर ऋषि-मुनियों तथा तपस्वियों के शान्त व सुन्दर आश्रम बने हुये थे, पर पहुँचे।

एक अत्यधिक सुन्दर आश्रम को देखकर रामचन्द्र ने गुरु विश्वामित्र से पूछा, हे गुरुवर!, यह परम रमणीक आश्रम किन महर्षि का निवास स्थान हैं?

राम के प्रश्न के उत्तर में ऋषि विश्वामित्र ने बताया, हे राम!, यह एक विशेष आश्रम है। पूर्व काल में कैलाशपति महादेव ने यहाँ घोर तपस्या की थी। सम्पूर्ण विश्व उनकी तपस्या को देखकर विचलित हो उठा था।

उनकी तपस्या से देवराज इन्द्र भयभीत हो गए और उन्होंने शंकर जी के तप को भंग करने का निश्चय किया। इस कार्य के लिये उन्होंने कामदेव को नियुक्त कर दिया।

भगवान शिव पर कामदेव ने एक के बाद एक कई बाण छोड़े जिससे उनकी तपस्या में बाधा पड़ी। क्रुद्ध होकर महादेव ने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया। उस तीसरे नेत्र की तेजोमयी ज्वाला से जल कर कामदेव भस्म हो गए।

देवता होने के कारण कामदेव की मृत्यु नहीं हुई केवल शरीर ही नष्ट हुआ। इस प्रकार अंग नष्ट हो जाने के कारण उसका नाम अनंग हो गया और इस स्थान का नाम अंगदेश पड़ गया। यह भगवान शिव का आश्रम है किन्तु भगवान शिव के द्वारा यहाँ पर कामदेव को भस्म कर देने के कारण इसे कामदेव का आश्रम भी कहते हैं।

गुरु विश्वामित्र की आदेशानुसार सभी ने वहीं रात्रि विश्राम करने का निश्चय किया। राम और लक्ष्मण दोनों भाइयों ने वन से कंद-मूल-फल लाकर मुनिवर को समर्पित किये और गुरु के साथ दोनों भाइयों ने प्रसाद ग्रहण किया।

तत्पश्चात् स्नान, सन्ध्या-उपासना आदि से निवृत होकर राम और लक्ष्मण गुरु विश्वामित्र से अनेक प्रकार की कथाएँ तथा धार्मिक प्रवचन सुनते रहे।

अन्त में गुरु की यथोचित सेवा करने के पश्चात् आज्ञा पाकर वे परम पवित्र गायत्री मन्त्र का जाप करते हुये तृण शैयाओं पर जा विश्राम करने लगे।

Ramayan, Ramayana, Ram Katha, Ramayan Katha, Shri Ram Charit Manas, Ramcharitmanas, Ramcharitmanas Katha, Sri Ram Katha, Ramayan Parayan, Ram, Sita Ram, Siya Ke Ram, He Ram, Hey Ram, Ram Chandra, Raam, Ram Laxman Janki Jay Bolo Hanumanki, Tulsi Ramayan, Ramayan Bal Kand, Bal Kand, Pratham Kand Bal Kand, Ram Katha Sunaye, Ram Katha Sune, Ram Katha Book
कामदेव का आश्रम – बालकाण्ड

Ramayan, Ramayana, Ram Katha, Ramayan Katha, Shri Ram Charit Manas, Ramcharitmanas, Ramcharitmanas Katha, Sri Ram Katha, Ramayan Parayan, Ram, Sita Ram, Siya Ke Ram, He Ram, Sita Ram, Siya Ke Ram, Bal Kand, Ramayan, Valmiki Ramayan, Tulsi Ramayan, Ramayan Katha, Katha Ramayan ki, Sita, Ram, SitaRam, Laxman, Bharat, Shatrudhna, Hanuman, Dashrath Raja, Kaushalya, Kaikeyi, Sumitra, Mantra, Urmila, Mandavi, Shurtkirti, Guh, Kevat, Sumant, Sugriv, Jamvant, Bali, Angad, Jamvant, Jatayu, Vibhishan, Ravan, Mandodari, Indrajit, Meghnad, Akshayjumar, Anhi Ravan.

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

66 − 58 =