राधे राधे आजका भगवत चिन्तन
श्री गणपति भगवान
भगवान शिव और माँ पार्वती के लाल श्री गणेश जी सभी देवों में अग्रपूज्य स्वीकार किए जाते हैं। गणेश जी का स्वरूप बड़ा ही अनुपम और अनेक सीखों से भरा पड़ा है।
भगवान गणेश पर हाथी का मस्तक विराजमान है। हाथी हमेशा अपने सामने वाली वस्तु को उसके वास्तविक स्वरूप से दुगुना बड़ा देखता है। अर्थात गणेश जी महाराज भी अपने सामने वाले को दुगुना करके ही देखते हैं। अर्थात सबको अति सम्मानपूर्ण दृष्टि से देखते हैं।
भगवान गणेश के बड़े बड़े कान हमें संकेत करते हैं कि हमेशा बड़ा अथवा श्रेष्ठ सुना करो। व्यर्थ के वाद विवाद में अपने अमूल्य समय को नष्ट मत करो।
भगवान गणेश को लम्बोदर भी कहा जाता है। अर्थात जीवन के भले – बुरे, खट्टे- मीठे और अनुकूल – प्रतिकूल सभी बातों अथवा सभी अनुभवों को अपने पेट में रखना अथवा पचाना सीखो!
भारी भरकम शरीर होने के बाद भी गणेश जी मूषक (चूहे) की सवारी करते हैं। अर्थात चाहे आप जीवन में कितने ही ऊँचे क्यों न उठ जाओ पर आपके पैर सदा जमीन पर ही होने चाहिएँ। अपने जीवन को हल्का बनाओ और विनम्र बनाओ।
दूसरों को सम्मान देने की कला, सदैव उच्च विचारों के चिंतन और मनन की कला, अनुकूलता – प्रतिकूलता सभी परिस्थितियों में समदृष्टि रखने की कला और अपने आप को सदैव विनम्र और शिष्ट रखने की कला मनुष्य को अग्रपूज्य बना देती है, यही तो गणेश जी महाराज के स्वरूप का संदेश है।
जय श्री कृष्णा
जय जय श्री राम
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